[Show all top banners]

taraniraula
Replies to this thread:

More by taraniraula
What people are reading
Subscribers
:: Subscribe
Back to: Kurakani General Refresh page to view new replies
 श्रीकृष्ण भगवान और अर्जुन के हम रहस्ययुक्तु कल्याण्स्कारक और अदभुत संवाद को पुनः
[VIEWED 4458 TIMES]
SAVE! for ease of future access.
Posted on 12-31-15 8:00 AM     Reply [Subscribe]
Login in to Rate this Post:     0       ?    
 

इसके उपरांत संजय बोला, हे राजन, इस प्रकार मैने श्री वासुदेव के और महात्मा अर्जुन के इस अदभुत रहस्ययुक्त और रोमांचकारक संवाद को सुना।

श्री व्यासजी की कृपा से दिव्‍य—दृष्टि के द्वारा मैने हम परम रहस्ययुक्त गोयनीय योग को साक्षात कहते हुए स्वयं योगेश्वर श्रीकृष्ण भगवान से सुना है।

इसीलिए हे राजन, श्रीकृष्ण भगवान और अर्जुन के हम रहस्ययुक्तु कल्याण्स्कारक और अदभुत संवाद को पुनः—युन: स्मरण करके मैं बारंबार हर्षित होता हूं।

तथा हे राजन, श्री हरि के उस अति अदभुत रूप को भी पुन—पुन: स्मरण करके मेरे चित्त में महान विस्मय होता है और मैं बारंबार हर्षित होता हूं।

हे राजन, विशेष क्या कहूं! जहां योगेश्वर श्रीकृष्ण भगवान हैं और जहां गांडीव धनुषधारी अर्जुन है, वही पर श्री? विजय, विभूति और अचल नीति है, ऐसा मेरा मत है।

पहले कुछ प्रश्न।

पहला प्रश्न : गीता में कृष्ण का जोर समर्पण, भक्ति, श्रद्धा पर है, लेकिन आज की विश्व—स्थिति में लोग बुद्धि—केंद्रित और संकल्प—केंद्रित हैं। इस स्थिति में गीता का मार्ग किस प्रकार मौज बैठता है?

सलिए ही मौजूं बैठता है।

लोग जब अति बुद्धि—केंद्रित होते हैं, तब बुद्धि एक घाव की तरह हो जाती है। बुद्धि का उपयोग तो उचित है, लेकिन बुद्धि के द्वारा संचालित होना उचित नहीं है। बुद्धि उपकरण रहे, उपयोगी है, बुद्धि मालिक बन जाए, घातक है।

चूंकि युग बुद्धि—केंद्रित है, बुद्धि एक घाव बन गयी है। उससे न तो जीवन में आनंद फलित होता, न शांति का आविर्भाव होता, न जीवन में प्रसाद बरसता। जीवन केवल चिंताओं, और चिंताओं से भर जाता है। विचार, और विचारों की विक्षिप्त तरंगें व्यक्ति को घेर लेती हैं।

बुद्धि अगर मालिक हो जाए, तो विक्षिप्तता तार्किक परिणाम है। बुद्धि अगर सेवक हो, तो अनूठी है। उसके ही सहारे तो सत्य की खोज होती है। फर्क यही ध्यान रखना कि बुद्धि तुम्हारी मालिक न हो; मालिक हुई, कि बुद्धि उपाधि हो गयी।

इसीलिए कृष्ण का उपयोग है। उनकी समर्पण की दृष्टि औषधि बन सकती है।

एक तरफ ढल गया है जगत, बुद्धि की तरफ। अगर थोड़ा भक्ति, थोड़ी श्रद्धा का संगीत भी पैदा हो, तो बुद्धि से जो असंतुलन पैदा हुआ है, वह संतुलित हो जाए; यह जो एकागीपन पैदा हुआ है, एकांत पैदा हुआ है, वह छूट जाए; जीवन ज्यादा संगीतपूर्ण हो, ज्यादा लयबद्ध हो।

हृदय और बुद्धि अगर दोनों तालमेल से चलने लगें, तो तुम परमात्मा तक पहुंच जाओगे।

ऐसा ही समझो कि कोई आदमी यात्रा पर निकला हो; बायां पैर कहीं जाता हो, दायां कहीं जाता हो; वह कैसे पहुंचेगा मंजिल तक? हृदय कुछ कहता हो, बुद्धि कुछ कहती हो, दोनों में तालमेल न हो, तो तुम कैसे पहुंच पाओगे? बुद्धि ले जाएगी व्यर्थ के विचारों में, व्यर्थ के ऊहापोह में, कुतूहल में; हृदय तड़पेगा प्रेम के लिए, प्यासा होगा श्रद्धा के लिए। दोनों दो दिशाओं में खींचते रहेंगे; तुम न घर के रह जाओगे, न घाट के।

ऐसी ही दशा मनुष्य की हुई है।

समर्पण का यह अर्थ नहीं है कि बुद्धि को तुम नष्ट कर दो। समर्पण का इतना ही अर्थ है कि बुद्धि अपने से महत्तर की सेवा में संलग्न हो जाए।

अभी श्रेष्ठ को अश्रेष्ठ चला रहा है; यही तुम्हारी पीड़ा है।

श्रेष्ठ अश्रेष्ठ को चलाने लगे, यही तुम्हारा आनंद हो जाएगा। अभी तुम सिर के बल खड़े हो; जीवन में पीड़ा ही पीड़ा है, नर्क ही नर्क है। तुम पैर के बल खड़े हो जाओ। अभी तुम उलटे हो।

बुद्धि कीमती है, इसे ध्यान रखना। लेकिन बुद्धि घातक है, अगर अकेली ही कब्जा करके बैठ जाए। और बुद्धि की वृत्ति है मोनोपोली की, एकाधिकार की। बुद्धि बड़ी ईर्ष्यालु है। जब बुद्धि कब्जा करती है, तो फिर किसी को मौका नहीं देती। जब विचार तुम्हें पकड़ लेते हैं, तो फिर निर्विचार के लिए कोई जगह नहीं छोड़ते। अगर दो विचारों के बीच निर्विचार भी तिरता रहे, तो विचारों से कुछ बिगड़ता नहीं, तुम उनका भी उपयोग कर लोगे।

जो होशियार हैं, जो कुशल हैं, वे जीवन में किसी चीज का इनकार नहीं करते, वे सभी चीज का उपयोग कर लेते हैं। जो कुशल कारीगर है, वह किसी पत्थर को फेंकता नहीं; वह मंदिर के किसी न किसी कोने में उसका उपयोग कर लेता है। और कभी—कभी तो ऐसा हुआ है कि जो पत्थर किसी भी काम का न था और फेंक दिया गया था, आखिर में वही शिखर बना।

जीवन में कुछ भी फेंकने योग्य नहीं है, क्योंकि परमात्मा व्यर्थ तो देगा ही नहीं। अगर तुम्हें फेंकने जैसा लगता हो, तो तुम्हारी नासमझी होगी। जीवन में सभी कुछ सम्यकरूपेण उपयोग कर लेने जैसा है। आज मनुष्य ज्यादा बुद्धि की तरफ झुक गया है। वह पक्षपात ज्यादा हो गया; संतुलन टूट गया है। आदमी गिरा—गिरा ऐसी अवस्था में है; नाव डूबी—डूबी ऐसी अवस्था में है, एक तरफ झुक गयी है। कृष्ण की बात इसीलिए मौजूं है।

संकल्प का भी मूल्य है, जैसे बुद्धि का मूल्य है। वस्तुत: जिसके भीतर संकल्प न हो, वह समर्पण भी कैसे करेगा?

तुम इन बातों को सुनकर चुनाव करने में मत लग जाना, अन्यथा पछताओगे। ये बातें चुनाव करने के लिए नहीं हैं; ये बातें तुम्हें पूरे जीवन की एक विहंगम दृष्टि देने के लिए हैं। जीवन की समग्रता तुम्हें दिखायी पड़नी चाहिए। और जब भी कभी एक चीज ज्यादा हो जाती है, तो उससे विपरीत पर जोर देना पड़ता है, ताकि संतुलन थिर हो जाए।

समर्पण का यह अर्थ मत समझना कि जिनके जीवन में संकल्प की कोई क्षमता नहीं, वे समर्पण कर पाएंगे। वे समर्पण भी कैसे करेंगे? समर्पण से बड़ा संकल्प है कोई? सब कुछ छोड़ता हूं इससे बड़ा कोई संकल्प हो सकता है? सब कुछ परमात्मा के चरणों में रख देता हूं इससे बड़ा कोई संकल्प हो सकता है? यह तो महा संकल्प है।

संकल्प का भी उपयोग कर लेता है समझदार व्यक्ति। वह संकल्प को समर्पण में नियोजित कर देता है। वह संकल्प के बैलों को समर्पण की गाड़ी में जोत देता है। यात्रा तो वह समर्पण की करता है, लेकिन संकल्प की सारी ऊर्जा का उपयोग कर लेता है। और ध्यान रखना, ऊर्जा तटस्थ है। ऊर्जा कहीं भी नहीं ले जा रही है; तुम जहां ले जाना चाहो, वहीं ले जाएगी।

मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन एक कार बेचने वाली दुकान में गया। उसने एक कार बड़ी देर तक गौर से देखी। दुकानदार ने बहुत समझाया। उसकी उत्सुकता देखी, लगा कि खरीददार है। प्रशंसा में उसने कहा कि यह कार दो घंटे में दिल्ली पहुंचा देती है, बड़ी तेज गाड़ी है। नसरुद्दीन ने कहा, फिर सोचकर कल आऊंगा।

वह कल आया। कहने लगा कि नहीं भाई, नहीं खरीदनी है। दुकानदार ने कहा, लेकिन हो क्या गया? क्या भूल—चूक मिली? उसने कहा, भूल—चूक का सवाल ही नहीं। मुझे दिल्ली जाना ही नहीं; मुझे लखनऊ जाना है! रातभर सोचा कि दिल्ली जाने का कोई कारण? कोई कारण दिखायी नहीं पड़ता!

अब कार न तो दिल्ली ले जाती है, न लखनऊ ले जाती है, सिर्फ ले जाती है। ऊर्जा तटस्थ है।

संकल्प अहंकार में भी ले जा सकता है, समर्पण में भी। यह बड़ी गुह्य बात है। इसे थोड़ा ध्यानपूर्वक समझना।

संकल्प अहंकार में भी ले जा सकता है; वह तो ऊर्जा है। तुमको अगर अहंकार भरना हो, तो तुम अपने सारे संकल्प को अहंकार के भरने के लिए ही नियोजित कर देना। तुम परमात्मा की तरफ पीठ कर लेना। लेकिन पीठ करने में भी ताकत लगती है। वह ताकत उतनी ही है, जितनी चरणों में सिर रखने में लगती है।

परमात्मा के खिलाफ लड़ने में उतनी ही ताकत लगती है, जितनी उसके आनंद में विभोर होकर नाचने में लगती है। नास्तिक परमात्मा के खिलाफ तर्क खोजने में उतनी ही शक्ति लगाता है, जितना आस्तिक उसकी अर्चना में लगाता है।

नास्तिक नासमझ है। क्योंकि अगर यह सिद्ध भी हो जाए कि परमात्मा नहीं है, तो भी नास्तिक को कुछ मिलेगा नहीं। उसकी जीवन— धारा मरुस्थल में खो गयी, वह सागर तक पहुंचेगी नहीं। इसी जीवन— धारा से सागर तक पहुंचा जा सकता था।

नास्तिक को मैं गलत नहीं कहता, सिर्फ नासमझ कहता हूं। आस्तिक को मैं समझदार कहता हूं। नास्तिक को मैं पापी नहीं कहता, सिर्फ भूल से भरा हुआ कहता हूं। और भूल से किसी और को वह नुकसान नहीं पहुंचाता, अपने को ही पहुंचाता है। जितनी ताकत परमात्मा से लड़ने में लगती है, उतनी ताकत में तो परमात्मा मिल जाता है।

ऊर्जा तटस्थ है। संकल्प को ही लगाना पड़ता है अहंकार के लिए, और संकल्प को ही लगाना पड़ता है समर्पण के लिए।

अगर अहंकार से थक गए हो, उसके कांटे चुभ गए हैं हृदय में गहरे, घाव बन गए हैं, तो अब उसी संकल्प को जिसे तुमने अहंकार की पूजा में निरत किया था, अब उसी संकल्प को समर्पण की सेवा में लगा दो।

ऊर्जा का कोई गंतव्य नहीं है; गंतव्य तुम्हारा है; तुम जिस तरफ चल पड़ो। अगर तुम नर्क जाना चाहो, तो पैर नर्क ले जाएंगे। पैर यह न कहेंगे कि नर्क क्यों ले जाते हो! पैरों को कोई प्रयोजन नहीं। पैरों को चलने से प्रयोजन है। तुम स्वर्ग ले जाओ, पैर स्वर्ग ले जाएंगे।

ध्यान रखना, तुमने जीवन की जो भी दशा बना ली है, उसी ऊर्जा से जीवन की दशा बिलकुल भिन्न भी हो सकती है।

तुमने कभी खयाल किया, चिंतित आदमी कितनी शक्ति लगाता है चिंता में! वही शक्ति प्रार्थना में लग सकती थी। अशात व्यक्ति कितनी शक्ति लगाता है अशांति में! उससे ही तो शून्य का जन्म हो सकता था। तुम व्यर्थ को खोजने में कितना दौड़ते हो! उतनी दौड़ से तो सार्थक घर आ जाता। उतनी दौड़ से तो तुम अपने घर वापस आ जाते। बाजार में कितना तुम श्रम कर रहे हो! उतने श्रम से तो यह सारा संसार मंदिर हो जाता। इसे बहुत खयाल में रख लो।

यह युग बुद्धि का युग है और संकल्प का, संकल्प यानी अहंकार का। इसलिए मैं कहता हूं कि अगर पश्चिम धर्म की तरफ मुड़ा, जैसा कि मुड़ रहा है, तो पूरब को मात कर देगा; क्योंकि ऊर्जा उसके पास है। अभी उसने बड़े भवन बनाने में लगाई है ऊर्जा, तो सौ और डेढ़ सौ मंजिल के मकान खड़े कर दिए हैं। अभी उसने चांद—तारों पर पहुंचने में ऊर्जा लगाई है, तो चांद—तारों पर पहुंच गया है। अगर कल उसके जीवन में क्रांति आयी..।

आएगी ही! क्योंकि चांद—तारे तृप्त नहीं कर रहे हैं। डेढ़ सौ मंजिल के मकान भी कहीं नहीं पहुंचाते, अधर में लटका देते हैं। विराट धन—संपदा पैदा हुई है। ऊर्जा है, संकल्प है, बल है।

अगर ये बलशाली लोग कल धर्म की तरफ लगेंगे, तो इनके मंदिर तुम्हारे मंदिरों जैसे दीन—हीन न होंगे। ये अगर चांद पर पहुंचने के लिए जीवन को दाव पर लगा देते हैं, तो समाधि में पहुंचने के लिए भी जीवन को दाव पर लगा देंगे। ये तुम जैसे काहिल सिद्ध न होंगे, सुस्त सिद्ध न होंगे।

इस बात को स्मरण रखो कि जिसके पास बड़ा संकल्प है, उसी के पास बड़ा समर्पण होगा; जिसके पास पका हुआ अहंकार है, वही तो चरणों में झुकने की क्षमता पाता है।

इसलिए मैं नहीं कहता कि तुम अहंकार को काटो, गलाओ। मैं कहता हूं पकाओ, प्रखर करो, तेजस्वी करो; तुम्हारा अहंकार जलती हुई एक लपट बन जाए; तभी तुम समर्पण कर सकोगे। तुमसे मैं यह नहीं कहता हूं कि तुम काहिल होकर गिर जाओ पैरों में, क्योंकि खड़े होने की ताकत ही न थी। ऐसे गिरे हुए का क्या मूल्य होगा? खडे हो ही न सकते थे, इसलिए गिर गए! सिर उठा ही न सकते थे, इसलिए झुका दिया। ऐसे पक्षाघात और लकवे से लगे लोगों के समर्पण का कोई भी मूल्य नहीं है।

मूल्य तो उसी का है, जिसने सिर को उठाया था और उठाए चला गया था, और सब आकाशों में सिर को उठाए खड़ा रहा था। बल था, बडे तूफान आए थे और सिर नहीं झुकाया था; बड़ी आधियां आई थीं और इंचभर हिला न सकी थीं। संसार में लड़ा था, जूझा था।

अर्जुन जैसा अहंकार चाहिए! योद्धा का अहंकार चाहिए! इसलिए जब अर्जुन झुकता है, तो क्षणभर में महात्मा हो जाता है।

अब तक संजय अर्जुन को महात्मा नहीं कहता, आज अचानक अर्जुन महात्मा हो गया! इस आखिरी घड़ी में, पटाक्षेप होने को है, गीता अध्याय समाप्त होने को है, अचानक अर्जुन महात्मा हो गया! क्या घटना घटी? वही ऊर्जा जो योद्धा बनाती थी, वही अब समर्पित हो गयी।


 
Posted on 12-31-15 8:14 AM     [Snapshot: 1]     Reply [Subscribe]
Login in to Rate this Post:     0       ?    
 

हैन यो हिन्दी पतिृकामा छाप्न पर्ने लेख साझामा ?

 
Posted on 01-02-16 1:33 AM     [Snapshot: 226]     Reply [Subscribe]
Login in to Rate this Post:     0       ?    
 

Bhate ni bahulayo, bhinaju sala ekai choti bahulaunchan...m8ji bahulayeko papi na ho...arulai bahula bhanera prove garna khojchas, herdai garlas shree krishna le racheko khel ko karma..
 


Please Log in! to be able to reply! If you don't have a login, please register here.

YOU CAN ALSO



IN ORDER TO POST!




Within last 365 days
Recommended Popular Threads Controvertial Threads
TPS Re-registration case still pending ..
TPS Re-registration
What are your first memories of when Nepal Television Began?
निगुरो थाहा छ ??
ChatSansar.com Naya Nepal Chat
Basnet or Basnyat ??
Sajha has turned into MAGATs nest
NRN card pros and cons?
Toilet paper or water?
TPS EAD auto extended to June 2025 or just TPS?
Do nepalese really need TPS?
Biden out, Trump next president, so what’s gonna happen to TPS, termination?
Nas and The Bokas: Coming to a Night Club near you
and it begins - on Day 1 Trump will begin operations to deport millions of undocumented immigrants
मन भित्र को पत्रै पत्र!
Will MAGA really start shooting people?
Democrats are so sure Trump will win
Tourist Visa - Seeking Suggestions and Guidance
From Trump “I will revoke TPS, and deport them back to their country.”
Anybody gotten the TPS EAD extension alert notice (i797) thing? online or via post?
Nas and The Bokas: Coming to a Night Club near you
TPS Update : Jajarkot earthquake
NOTE: The opinions here represent the opinions of the individual posters, and not of Sajha.com. It is not possible for sajha.com to monitor all the postings, since sajha.com merely seeks to provide a cyber location for discussing ideas and concerns related to Nepal and the Nepalis. Please send an email to admin@sajha.com using a valid email address if you want any posting to be considered for deletion. Your request will be handled on a one to one basis. Sajha.com is a service please don't abuse it. - Thanks.

Sajha.com Privacy Policy

Like us in Facebook!

↑ Back to Top
free counters